रविवार, 30 दिसंबर 2007

साथी अब न रहा जाता है

साथी अब न रहा जाता हैं

कैसा ये एकाकी पन हैं
मौन बना मेरा जीवन है

निर्जन राहों में तेरे बिन, मुझसे नहीं चला जाता है

नयन नहीं मेरे सोते हैं
देख सितारे भी रोते हैं

चँन्दा भी हर रात यहां से, कुछ उदास होकर जाता है

मन को फिर भी बहलाता हूँ
बिन स्वर के ही मैं गाता हूँ

बिन पंखो का कोई पखेरू,आसमान में उड़ पाता है

स्वरचित........विक्रम



शनिवार, 29 दिसंबर 2007

आज...................

आज रात कुछ थमी थमी सी

स्वप्न न जाने कैसे भटके
नयनो की कोरो से छलके

दूर स्वान की स्वर भेदी से, हर आशाये डरी डरी सी

दर्दों का वह उडनखटोला

लेकर मेरे मन को डोला

स्याह रात की जल धारा से, मेरी गागर भरी भरी सी

शंकावो का कसता धेरा
कैसा होगा मेरा सवेरा


मंजिल के सिरहाने पर ये, राहे कैसी बटी बटी सी

स्वरचित..........................................................................vikram





शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007

ओ मधुमास........................

ओ मधुमास मेरे जीवन के

क्यू इतने सकुचे सकुचे हो
शिशिर गया फिर भी सहमे हो

कहा बसंती हवा रह गयी.क्या दिन आये नहीं फाग के

जीवन की इन कलिकाओ में
मेरे मन की आशावो मे

कब पराग भर पावोगे तुम ,शिशिर-समीरण से बच करके

अधर मेरे अतृप्त बडे हैं
खाली सब मधुकोष पड़े हैं

कौन ले गया छ्ल कर मुझसे मधु-मय पल जीवन के

स्वरचित..............................vikram

गुरुवार, 27 दिसंबर 2007

अर्थ हीन

अर्थ हीन सम्वादो का सिलसिला
मै तोडना नही चाहता
शायद इसी बहाने
मै तुम्हे छोडना नही चाहता

विक्रम

मेरे.....................

मेरे आसुओ मे देखो क्या, सब्रे आशिकी है
मचले हैं क्याँ सभल कर,पलकें भी नम नहीं हैं

vikram

ओ महाशून्य...............

ओ महाशून्य ओ महामौन

हे तन विहीन तू कहा लीन
ले मेरे जीवन गीत छीन

स्वर मेरे कर तू अभि-कुंठित,हो मौन बने ये दिग्विहीन

मेरा अकार कर निराकार
जाना मुझको हैं काल-द्वार

जीवन उत्सव उत्सर्ग हेतु, अभिमंत्रित कर तू मौन बीन

तू हर ले मुझसे प्राण-बीज
अंकुरित न कर दे कोई सीच

अब मुझे शून्य में सोने दे,चिर-निन्द्रा में हो के बिलीन

स्वरचित..........................vikram

बुधवार, 26 दिसंबर 2007

होती हैं जब भी...........

होती है जब भी शाम सखे

तरु पातों को करके कंचन
सरिता को दे सिन्दूरी तन

जाने से पहले करता है,रवि धरती का ऋँगार सखे

नीडो मे सबको पहुचाता
रवि अस्ताचल को हैं जाता

पश्चिम की गोदी मे छुप कर वह करता हैं ,विश्राँम सखे

मेरी आशा की श्रांत किरण
लौटी हैं दुःख का किये वरण

आकर दृग बिन्दु कपोलों पर, रक्तिम होते हर शाम सखे
vikram




सोमवार, 24 दिसंबर 2007

रोती रजनी ...........

रोती रजनी हैं प्रभा द्वार

स्वर्णिम आशा के बंद द्वार
ये रूग्ण हाथ वाले कहार

ले जायेगे क्या डोली को ,अपने हाथो से पट उघार

रवि-रजनी का यह आलिंगन
कब तक ठहरेगा यह बन्धन

नव-वधू आज कर पायेगी ,प्रिय हाथो क्या अपना ऋंगार

हैं व्यर्थ गए सब करूण गान

रवि किरणों ने हर लिये प्राण

तम छुपा कहीं पर बैठा हैं, रवि किरणों पर करने प्रहार

स्वरचित///////////////////vikram

आज रात...............

आज रात कुछ थमी-थमी सी

स्वप्न न जानें कैसे भटके
नयनों की कोरो से छलके

दूर स्वान की स्वर भेदी से ,हर आशाये डरी-डरी सी

दर्दो का वह उडनखटोला
ले कर मेरे मन को डोला


स्याह रात की जल-धरा से ,मेरी गागर भरी-भरी सी

शंकावो का कसता धेरा
कैसा होगा मेरा सवेरा

मंजिल के सिरहाने पर ये ,राहें कैसी बटी-बटी सी

स्वरचित................vikram

रविवार, 23 दिसंबर 2007

सुनो
तन्हाई में
अधरों पर अधर की छुवन
गर्म सासों की तपन

और एक दीर्ध आलिगन का एहसास
होता तो होगा
बीता कल कभी कभी
चंचल भौरे की तरह
मन की कली पर मडराता तो होगा
किसी न किसी शाम
डूबते सूरज को देख
मचलती कलाइयो को छुडा कर
घर की चौखट पर आना याद तो आता होगा
मुझे तो भुला दोगी
पर सच कहना
क्या
इन्हें भूलने का ,मन करता होगा

स्वरचित............vikram

मानव.......

मानव ह्रदय में
प्रभुता,सम्पन्नता, योग्यता के ,प्रश्न उभरे

मुख से -ब्राम्हण
बाहु से -क्षत्रिय
जंघा से-वैश्य
पद से ,शूद्र जन्में
योग्यता कर्म की नहीं ,जाति की गुलाम हो गयी
अहम् बढ़ता गया
राम ने शूद्र को फांसी दी
द्रोणाचार्य ने ,एकलव्य का अंगूठा लिया
मुख ,बाहू,जंघा ने
पैर को गौण बना दिया
पैर डगमगा गए
देखिए,सब अपनी औकात मे आ गए

स्वरचित.................vikram

सच नही कोई परिंदा, जाल मे फँस जाएगा

कर हलाले-पाक उसको चाक कर खा जाएगा



रख जुबाँ फिर भी यहाँ तू , बे-जुबाँ हो जाएगा

देखकर शमसीर यदि तू , सच नहीं कह पायेगा



दिल्लगी में दिलकशी हो , दिल कहाँ फिर जाएगा

प्यार और नफरत में यारा , फर्क क्या रह जाएगा



प्यार अपने इम्तिहाँ के , दौर से बच जायेगा

वक़्त की तारीक मे , कैसे पढा वह जायेगा





स्वरचित.............................vikram