मंगलवार, 19 फ़रवरी 2008

तुमारी पलकों का ..........

मैं आज आदरणीय अज्ञेय जी की एक कविता उनकी पुस्तक"आँगन के पार द्वार" से प्रस्तुत कर रहा हूँ,आशा हैं पसंद आयेगी।

तुम्हारी पलकों का कँपना.

तनिक-सा चमक खुलना,फिर झँपना।

तुम्हारी पलकों का कँपना।

मानो दीखा तुम्हें लजीली किसी कली के

खिलने का सपना।

तुम्हारी पलकों का कँपना।

सपने की एक किरण मुझ को दो न,

हैं मेरा इष्ट तुम्हारे उस सपने का कण होना ।

और सब समय पराया हैं।
बस उतना क्षण अपना।

तुम्हारी पलकों का कँपना।

[अज्ञेय]

मंगलवार, 29 जनवरी 2008

दर्द को...............

दर्द को दिल में उतर जाने दो
आज उनको भी कहर ढाने दो

रात हर चाँद से होती नहीं मसरुफे-सुखन
स्याह रंगो के नजारे भी नजर आने दो

एक अनजानी सी तनहाई, सदा रहती है
आज महफिल में उसे नज्म कोई गाने दो

जिनने दरियाओं के मंजर ही नहीं देखे हैं
उन सफीनो पे-भी अफसोस जरा करने दो

कोई वादे को निभा दे यहाँ ऐसा तो नहीं
सर्द वादों को कोई राह नई चुनने दो

चंद कुछ राज यहाँ यूँ ही दफन होते नहीं
आज अपना ही जनाजा मुझे ले जानेदो

vikram

गुरुवार, 17 जनवरी 2008

मैं जीवन ............

मैं जीवन का बोधि-सत्व क्याँ खो बैठा हूँ
या जीवन के सार-तत्व में आ बैठा हूँ
मैं अनंत की नीहारिका में अब क्या ढूढूँ
स्वंम पल्लवित सम्बोधन में खो बैठा हूँ

राग और अनुराग लिये मैं जी लेता हूँ
जीवन का यह जहर निरंतर पी लेता हूँ
सत्यहीन क्या सृजन कभी भी संभव होगा
आरोपित जब क्रिया कर्म को दूढ़ हूँ

दंड लिए मैं सहभागी को दूढ़ रहा हूँ
इसी क्रिया में अपनों से ही रूठ रहा हूँ
मैं भुजंग की फुफकारो में रच बस बस करके
मलय पवन की शीतलता को खोज रहा हूँ

इति जीवन अध्याय निकट मैं समझ रहा हूँ
न जाने क्यूँ प्रष्ठ नये मैं जोड़ रहा हूँ
कठपुतली बस नचे डोर ये छोड़ न पाये
इस सच से मैं नहीं स्वयं को जोड़ रहा हूँ

vikram

मंगलवार, 8 जनवरी 2008

आज चली कुछ.......................

आज चली कुछ ऎसी बातें
बातों पर हैं जाएँ बातें

हँसती हुयी सुनी हैं बातें
बहकी हुयी सुनी हैं बातें
बच्चो की क्या प्यारी बातें
इनकी बातें ,उनकी बातें
होती हैं कुछ अपनी बातें
दिल को छू जाती हैं बातें
आसूँ में कुछ डूबी बातें
क्यूँ करते हो ज्यादा बातें

आज............................

होती बड़ी मृदुल कुछ बातें
कर्कश भी होतीं है बातें
प्रेम कराती हैं ,ये बातें
बातें बंद कराती बातें
सहनी पड़ती हैं कुछ बातें
सही नहीं जातीं कुछ बातें
उचे स्वर में होतीं बातें
चुपके-चुपके होतीं बातें

आज...........................

नयनों में जब होतीं बातें
क्या समझोगे ऎसी बातें
हर भाषा में होतीं बातें
कुछ सच्ची कुछ झूठी बातें
हार की बातें जीत की बातें
गीत और संगीत की बातें
ज्ञान और विज्ञान की बातें
हर मौसम पर करते बातें


आज............................

कभी वीरता की हों बातें
क्रोध भरी भी होतीं बातें
डींग हाकती हैं कुछ बातें
डरी और सहमी सी बातें
ध्रणा दर्द पर भी हों बातें
जन्म म्रत्यु पर होती बातें
बंद करो भी ऐसी बातें
अब न सुनी जाती ये बातें

आज.........................

स्वार्थ और परमार्थ की बातें
धनी और निर्धन की बातें
ताकतवर निर्बल की बातें
भूखे प्यासों की भी बातें
सुनने जाते हैं कुछ बातें
सुनकर न सुनते कुछ बातें
कुछ होतीं है ऐसी बातें
कह न कही सकते वे बातें

आज...............................

ममता मयी हैं माँ की बातें
शिक्षा देती गुरु की बातें
अच्छी और बुरी कुछ बातें
है गंभीर बहुत सी बातें
कभी कभी भरमाती बातें
है इतिहास बनाती बातें
युगों युगों तक चलती बातें
कुछ होतीं हैं ऎसी बातें

आज.............................

किसके दम पर इतनी बातें
इस पर भी हो जायें बातें
दिल की धड़कन से हैं बातें
सासों पर निर्भर हैं बातें
जब तक करती हैं ये बातें
तब तक है अपनी भी बातें
अभी बहुत अनकही हैं बातें
सोच समझ कर करना बातें

आज...............................

स्वरचित..........................vikram

शुक्रवार, 4 जनवरी 2008

हैं मेरी वीरान ..........

है मेरी वीरान दुनियां

एक अभिलाषा संजोये
नयन हैं अब तक न सोये

एक कविता मेरे मन की, क्या पढेगी आज दुनियां

यादों के खामोश साये
दर्द क्यूँ दिल में जगाये

मेरे दिल में उठ रहे ,तूफान से अनजान दुनियां

रात बीती जा रही है
प्रीत की कुछ रीत भी है

तुम नहीं जो आज आये, कल हसेगी मुझपे दुनियां

[स्वरचित]...........................vikram

बुधवार, 2 जनवरी 2008

आज फिर.................

आज फिर कुछ खो रहा हूँ

करुण तम में है विलोपित
हास्य से हो काल कवलित

अधर मे हो सुप्त, सपनो से विछुड कर सो रहा हूँ

नग्न जीवन है, प्रदर्शित
काल के हाथों विनिर्मित

टूटते हर खंड में ,चेहरा मै अपना पा रहा हूँ

आज से है कल हताहत
अब कहां जाऊँ तथागत

नीर से मै नीड का निर्माण करके रो रहा हूँ

स्वरचित... विक्रम

रविवार, 30 दिसंबर 2007

साथी अब न रहा जाता है

साथी अब न रहा जाता हैं

कैसा ये एकाकी पन हैं
मौन बना मेरा जीवन है

निर्जन राहों में तेरे बिन, मुझसे नहीं चला जाता है

नयन नहीं मेरे सोते हैं
देख सितारे भी रोते हैं

चँन्दा भी हर रात यहां से, कुछ उदास होकर जाता है

मन को फिर भी बहलाता हूँ
बिन स्वर के ही मैं गाता हूँ

बिन पंखो का कोई पखेरू,आसमान में उड़ पाता है

स्वरचित........विक्रम